Thursday, July 20, 2023

ढाई आखर प्रेम के

गंगा सागर से भी जुड़ी है और हिमालय से भी।दोनों छोरों पर वह स्थिर है और मध्य  में गतिमान है। हिमालय में हिम के रूप में रूप बदल कर रहती है और सागर की गहराई में अदृश्य हो जाती है। सारी हलचल उसके कर्मक्षेत्र में है। गंगा की महानता उसके हिमालय से प्रवाहित होने के कारण भी है और सागर में मिलने के कारण भी। बहते समय वह अनेक छोटी जल धाराओं, नदियों को अपने में समा लेती है व कई पदार्थों के कारण दूषित होती है। इसी प्रकार आत्मा जन्म के पूर्व अव्यक्त है, मृत्यु के बाद भी उसका पता नहीं, केवल मध्य में जीवन दिखाई देता है। जैसे कोई जुगनू पल भर को चमके और बुझ जाये। इस छोटे से जीवन को यदि मानव प्रेम और ज्ञान से भर ले तो आनंद उसका नित्य सहचर बन सकता है। प्रेम से बढ़कर आनंद का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। स्वयं का ज्ञान हुए बिना प्रेम संभव नहीं है। प्रेम ही सृष्टि के तत्त्वों को आपस में जोड़े हुए है। प्रेम ही एक व्यक्ति के ह्रदय को इतना विशाल बना देता है कि वह सारे विश्व को अपना मानने लगता है।  


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