Thursday, July 6, 2023

तोरा मन दर्पण कहलाये

मन उसी का नाम है जो सदा डांवाडोल रहता है, तभी मन को पंछी भी कहते हैं हिरन भी और वानर भी..आत्मा रूपी वृक्ष के आश्रय में  बैठकर टिकना यदि इसे आ जाये तो इसमें भी स्थिरता आने लगती है, वास्तव में वह स्थिरता होती आत्मा की है प्रतीत होती है मन में, जैसे सारी हलचल होती बाहर की है प्रतीत होती है मन में।मन तो दर्पण ही है जैसा उसके आस-पास होता है झलक जाता है. संगीत की लहरियों में डूबकर यह मस्त हो जाता है और किसी उपन्यास के भावुक दृश्य में भावुक।ऐसे मन का चाहे वह अपना हो या अन्यों का क्या रूठना और क्या मनाना।क्यों न हर सुबह मन को समझते हुए प्रवेश करें ताकि न किसी से मनमुटाव हो और न किसी का मन टूटे. आत्मा रूपी वृक्ष पर कुसुम की तरह खिला रहे सबका मन.


6 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-07-2023) को   "आया है चौमास" (चर्चा अंक 4671)   पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

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  3. बहुत ख़ूब, वाह वाह!

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  4. मन को परिभाषित करता विवरण... गागर में सागर!

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