हमारे जीवन की बागडोर हमने विवेक के हाथों में सौंपी है या मन के, इसकी खबर हमें तब मिलती है, जब जीवन में व्यर्थ के कष्ट आते हैं। दिनचर्या यदि सुव्यवस्थित नहीं रखी, अनुशासन का पालन नहीं किया, स्वाद के वशीभूत होकर अखाद्य पदार्थों का सेवन किया। रात्रि को देर तक जागरण किया। समय को व्यर्थ गँवाया। अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं किया। अपनी ख़ुशी के लिए संसार से उम्मीदें रखीं, जो पूरी नहीं हुईं तो उसका अफ़सोस किया। ये सब बातें विवेक के विपरीत हैं। हम अपने आप को भूले न रहें। देह, मन, बुद्धि आदि की सेवा में ही न लगे रहें, बल्कि ऐसा विवेक जगायें जो आत्मा के सानिध्य में ले जाये। विवेक का अर्थ है यह ज्ञान कि संसार उसी का नाम है जो निरंतर बदल रहा है। जो नित्य-अनित्य, सांत-अनंत में भेद करना सिखाये वही विवेक है।नित्य और अनंत के साथ एकत्व का अनुभव किए बिना कोई मुक्त नहीं हो सकता।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteधन्यवाद
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स्वागत व आभार !
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