प्रेम एक वरदान की तरह जीवन में घटता है। वह अनमोल हीरे की तरह है, पर वक्त के साथ हर हीरे की चमक फीकी पड़ जाती है। दुनियादारी की धूल उस पर जमती जाती है। युवा धीरे-धीरे उस प्रेम को भुला ही बैठते हैं और कर्त्तव्य, ज़िम्मेदारी, जीविकोपार्जन, स्वार्थ, ज़रूरतें, संदेह और न जाने कौन से परत दर परत उस हीरे पर जमने लगती है। वे भूल ही जाते हैं कि प्रेम का दीपक कभी भीतर जगमगाता था, जब उनके दिल सदा रोशन रहते थे और वे ऊर्जा से भरे रहते थे। मीलों दूर रहकर भी वे एक-दूसरे की उपस्थिति को महसूस करते थे। जैसे भक्त भगवान को नहीं भूलता चाहे वे वैकुंठ में हों या कैलाश में ! प्रेम की वह आग धीरे-धीरे राख में बदल जाती है, पर कोई न कोई चिंगारी भीतर तब भी सुलगती है। अंतत: वह भी आग ही है, ज़रा सी हवा देने की देर है। हीरा, हीरा ही है, ज़रा चमकाने की देर है। हर पर्व इसी को याद दिलाने आता है। शिव-पार्वती का प्रेम अमर है। पार्वती बार-बार शिव के लिए जन्म लेती है। वैसे ही प्रेम बार-बार खोकर फिर सजीव होता है। कोई अपनों से कितना भी रुष्ट हो जाए, पुनः-पुनः प्रेम भीतर जागता है। वह अमर है। शिवरात्रि इसी प्रेम को भीतर जगाने की याद दिलाने आती है।प्रेम हमारा अस्तित्व है, इसलिए वह कभी मृत नहीं होता। यदि वह विलीन होता हुआ सा लगे तो कोई पहले दर्पण में अपनी आँखों में झांके फिर अपने प्रियजन की आँखों में, केवल एक वही नज़र आएगा, क्योंकि उसके सिवा कुछ है ही नहीं। सद्गुरू उसी प्रेम को सारे विश्व में बाँटने के लिए सारा आयोजन कर रहे हैं; क्योंकि प्रेम ही जग को चलाता है।
शिव-पार्वती के दृष्टान्त से प्रेम की सूक्ष्म संरचना पर अत्यंत सुन्दर विचाराभिव्यक्ति। महाशिवरात्रि पर्व की आपको अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteआपको भी महाशिवरात्रि के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteसही कहा आपने, तभी तो कहते है कि प्रेम कभी मरता नही, महाशिवरात्रि पर बहुत ही सुन्दर सन्देश,सादर नमन
ReplyDeleteस्वागत व आभार कामिनी जी!
Deleteआदरणीया अनीता जी ! प्रणाम !
ReplyDeleteसत्य कहा " प्रेम से प्रगट होइ भगवाना !" अस्तु शिव पार्वती के प्रेम को समर्पित उत्तम पठनीय भक्ति आलेख !
श्रेष्ठ रचना के लिए बहुत अभिनन्दन !
आपको शिवरात्रि महापर्व की अनेक शुभकामनाये !
हर हर महादेव !
आपको भी महाशिवरात्रि के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
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