वर्ष में चार बार नवरात्रों का आगमन होता है लेकिन इनमें से चैत्र शुक्ल पक्ष एवं आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक आने वाले नवरात्रों का विशेष महत्व है। वासंतिक नवरात्र से ही भारतीय नववर्ष शुरू होता है। भारत में प्रचलित सभी काल गणनाओं के अनुसार सभी संवतों का प्रथम दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है।नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। देवी माँ के नौ रूप इस प्रकार हैं- शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कन्द माता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी एवं सिद्ध दात्री। नवरात्रों में किये गये देवी पूजन, हवन, धूप-दीप आदि से घर का वातावरण पावन होता है और मन एक अपूर्व शक्ति एवं शुद्धि का अनुभव करता है।वैज्ञानिक दृष्टि से जिस समय नवरात्र आते हैं वह काल संक्रमण काल कहलाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर जहाँ शीत ऋतु का आरम्भ होता है वहीं वासंतिक नवरात्र पर ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है। दोनों ही समय वातावरण में विशेष परिवर्तन होता है। जिसमें अनेक प्रकार की बीमारियां होने की संभावना रहती है। ऐसे में हल्का भोजन लेने अथवा उपवास करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
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