Monday, June 12, 2023

सत्व बढ़ेगा जब जीवन में

सृष्टि का आधार सच्चिदानंद है, अर्थात् जो सदा है, ज्ञान स्वरूप है और आनंद से परिपूर्ण है। जड़-चेतन जो भी पदार्थ हमें दृष्टिगोचर  होते हैं, वे रूप बदलते रहते हैं; किंतु उनका कभी नाश नहीं होता। यहाँ पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में निरन्तर बदल रही है।हम जो भोजन करते हैं उसका सूक्ष्म अंश ही मन बन जाता है, इसलिए सात्विक भोजन का इतना महत्व है। राजसिक भोजन मन को चंचल बनाता है और तामसिक भोजन प्रमाद से भर देता है। शरीर में आलस्य, भारीपन  तथा बेवजह की थकान भी गरिष्ठ भोजन से होती है। इतना ही नहीं पाँचों इंद्रियों से हम जो भी ग्रहण करते हैं, मन पर उसका प्रभाव पड़ता है। यदि हम चाहते हैं कि मन सदा उत्साह से भरा हो, सहज हो तो इसे सत्व को धारण करना होगा और अंततः उसके भी पार जाकर अनंत में विलीन होना होगा। मन जब स्वयं को समर्पित कर देता है तो भीतर शुद्ध अहंकार का जन्म होता है, जो सदा ही पावन है। 


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