Monday, June 19, 2023

चले योग की राह पर जो भी

आज के समय में लोग बाहर इतना उलझ गये हैं कि अपने भीतर जाने की राह नहीं मिलती। कहीं कोई प्रकाश का स्रोत मिल जाये तो वे उसके पास जमा हो जाना चाहते हैं। आश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। कथाओं, मंदिरों, सत्संगों में भी भीड़ ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है यह कारण तो है ही, पर सामान्य जीवन में इतना दुख, इतनी अशांति है कि लोग कुछ और पाना चाहते हैं। संत कहते हैं, साधना करो, भीतर जाओ, अंतर्मुखी बनो, पर ऐसा कोई-कोई ही करते हैं। अधिकतर तो भगवान को भी बाहर ही पाना चाहते हैं।  कोई प्रार्थना की विधि पूछते हैं तो कोई भगवान पर भी मानवीय गुणों को आरोपित कर उसे बात-बात पर क्रोध करने वाला बना देते हैं। कुछ रिश्तों के जाल में उलझ गये हैं। वे उससे बाहर नहीं निकल पाते, कोई जाति, धर्म, लिंग भेद में धंस गये हैं । स्त्री-पुरुष के मध्य समानता के नारे लगाये जाते हैं, पर स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है।ऐसे में जब तक योग व अध्यात्म को जीवन का एक आवश्यक अंग बनाकर उसकी शिक्षा नहीं दी जाती, मानव जीवन में अशांति को दूर नहीं किया जा सकता। 


2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-06-2023) को   "गगन में छा गये बादल"  (चर्चा अंक 4669)   पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

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