जीवन परम विश्रांति का साधन बन सकता है, यदि कोई अंतर्मुखी होकर अपने भीतर झांके। तीव्र गति से भागते हुए दरिया से मन को आहिस्ता-आहिस्ता बांध लगाये, फिर थिर पानी में स्वयं की गहराई का अनुभव करे। उस शांत ठहरे हुए मन की गहराई में पहली बार ख़ुद की झलक मिलती है। कोमल, स्निग्ध, शांति का अनुभव होता है। वह कितनी भी क्षणिक क्यों न हो, उसकी स्मृति सदा के लिए मन पर अंकित हो जाती है; फिर कभी ऊहापोह में फँसा मन उसी की याद करता है, उसे लगन लग जाती है। भक्ति का जन्म होता है। उसके प्रति आकर्षण कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है। इसमें चाहे कितना ही समय लग जाये, वर्षों का अंतराल हो पर एक न एक दिन वह स्वयं को अस्तित्व से जुड़ा हुआ जानता है। यही समाधि का क्षण है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी!
Deleteगज़ब
ReplyDeleteअद्धभुत साधना
स्वागत व आभार विभा जी!
Deleteबहुत सुन्दर विचार ! आत्मा से परमात्मा के मिलन की यात्रा - पहले धारणा फिर ध्यान और अंत में समाधि ! सूफ़ी इसे शरियत, तरीक़त, मारिफ़त और फिर हक़ीक़त में देखते हैं.
ReplyDeleteपोस्ट के मर्म को समझाती सार्थक टिप्पणी, स्वागत व आभार !
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