शास्त्रों के अनुसार हमार शरीर एक रथ है अथवा तो एक वाहन है। आत्मा इसमें यात्री है, बुद्धि सारथि अथवा वाहन चालक है। मन लगाम या स्टीयरिंग है। इंद्रियाँ घोड़े अथवा पहिये हैं। सामान्य तौर पर यात्री को जहां जाना है वह सारथी से कहता है और अपने गंतव्य पर पहुँच जाता है। किंतु इस आत्मा रूपी सवार को अपना ही बोध नहीं है, इसलिए उसे कहाँ जाना है इसका बोध कैसे रहेगा।चालक का भी लगाम पर नियंत्रण नहीं है, घोड़े भी मनमानी करते हैं। कोई उत्तर जाना चाहता है, जहां से सुंदर ध्वनियाँ आ रही हैं, कोई दक्षिण, जहां से सुंदर गंध आ रही है। इंद्रियाँ ऐसे ही मन को भटकाती हैं, बुद्धि मन के पीछे लगी है। आत्मा कहीं भी पहुँच नहीं पाती, हिचकोले खाती, उन्हीं दायरों में घूमती रहती है। कभी दुर्घटना हो जाती है तो वह चौंक कर जागती है, वाहन को दुरस्त कराती है, योग का जीवन में प्रवेश होता है। सारथि को लगाम पकड़ना सिखाना ही मन का नियंत्रण करना है। सारथि रूपी बुद्धि का ज्ञान से योग होता है तो जीवन की गाड़ी सही मार्ग पर चलने लगती है। मार्ग में सुंदर प्रदेशों के दर्शन करते हुए वह अन्यों का भी सहयोग करती है। जीवन का एक नया अध्याय आरंभ होता है।
प्रणाम अनीता जी, वाह क्या बात कही कि ....योग का जीवन में प्रवेश होता है। सारथि को लगाम पकड़ना सिखाना ही मन का नियंत्रण करना है...शानदार कथ्य
ReplyDeleteस्वागत व आभार अलकनंदा जी !
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