श्वास एक भी व्यर्थ न जाये, काम किसी के आये,
गुरु की वाणी है अनमोल, पग-पग राह दिखाए !
समय तब व्यर्थ जाता है जब हम दुनियादारी में फँसकर अपने सच्चे स्वरूप की स्मृति को भुला देते हैं।सही-ग़लत में भेद करना छोड़ देते हैं। समाज में चल रहे ग़लत रीति-रिवाजों को सही न मानते हुए भी उनमें अपना मूक समर्थन देते रहते हैं। किसी न किसी को खुश करने के लिए ऐसी बातें भी मान लेते हैं, जिनके प्रति हमारा ह्रदय गवाही नहीं देता। हम अन्याय का प्रतिकार नहीं करते, ताकि ऊपरी सुख-शांति बनी रहे, चाहे गहराई में असंतुष्टि बनी रहे। जीवन चाहता है हम प्रामाणिक बनें। सत्यवान हों, चाहे उसके लिए कितने ही विरोधों का सामना क्यों न करना पड़े।
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