Monday, May 18, 2015

कमल खिले मन सरवर में जब

फरवरी २००९ 
भीतर जाकर ही ज्ञान होता है कि बाहर कुछ भी अपना कहने जैसा नहीं है, पकड़ने को यहाँ कुछ भी नहीं है. यदि इस ज्ञान के बीज को अपने हृदय में धारण किया, सींचा और पालना की तो भीतर एक कमल खिलता है. दूसरे से सुख न कभी मिला है, न मिलेगा, वही जानना ही प्रेम है. जाग्रति का तेल हो और प्रेम की बाती हो तो आनंद का प्रकाश फैलता है और तब वहाँ होती है परम शांति ! यह संसार जो पहले कारागृह लगता था अब वह सुंदर आश्रय स्थल बन जाता है. जागना हमारे हाथ में है, प्रेम हमारे भीतर है. अगर अपने दुखों से अभी तक घबरा नहीं गये तो बात और है लेकिन जब भीतर की पीड़ा खलने लगे तो खिलने देना है भीतर का कमल.  

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