फरवरी २००९
भीतर जाकर
ही ज्ञान होता है कि बाहर कुछ भी अपना कहने जैसा नहीं है, पकड़ने को यहाँ कुछ भी
नहीं है. यदि इस ज्ञान के बीज को अपने हृदय में धारण किया, सींचा और पालना की तो
भीतर एक कमल खिलता है. दूसरे से सुख न कभी मिला है, न मिलेगा, वही जानना ही प्रेम
है. जाग्रति का तेल हो और प्रेम की बाती हो तो आनंद का प्रकाश फैलता है और तब वहाँ
होती है परम शांति ! यह संसार जो पहले कारागृह लगता था अब वह सुंदर आश्रय स्थल बन
जाता है. जागना हमारे हाथ में है, प्रेम हमारे भीतर है. अगर अपने दुखों से अभी तक
घबरा नहीं गये तो बात और है लेकिन जब भीतर की पीड़ा खलने लगे तो खिलने देना है भीतर
का कमल.
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