जनवरी २००९
सारे पापों
का जोड़ अहंकार है और सारे पुण्यों का जोड़ आनंद है ! दुःख के कारण ही हम हैं और सुख
के कारण ही परमात्मा है. दुःख की घड़ी में दो हैं, दुःख व दुःख भोगने वाला, लेकिन
आनंद में केवल आनंद होता है, नहीं बचता है कोई आनंद भोगने वाला. हमारे गहरे से
गहरे होने का नाम ही परमात्मा है ! अपने होने को जब हमने साध लिया तो मानो
परमात्मा ही हमसे झलकने लगता है ! आनंद की कुंजी उसके हाथ लगती है जो अपने को सुखी
करने की ठान लेता है.
आपने आनन्द को बहुत ही सुन्दर रीति से परिभाषित किया है ।
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