जनवरी २००९
दुनिया में
इतनी विविधता है पर मृत्यु में कोई भेद नहीं, अमीर-गरीब, बच्चा-बूढ़ा,
पापी-पुण्यात्मा सब वहाँ समान होते हैं. मरघट में ज्ञानी भी धूल में मिल जाते हैं
और अज्ञानी भी. मौत सभी को एक स्तर पर ला देती है. जब किसी की मृत्यु हो तो यह मानना
चाहिए कि मेरी ही मृत्यु हो रही है. जब कोई अपमानित हो यही मानना चाहिए कि हमारा
ही मन अपमानित हुआ है. सादृश्य अहंकार की मृत्यु है और सादृश्य करुणा को जन्म देता
है. सादृश्य का बोध हमें परमात्मा की ओर ले जाता है. यदि हमारे जीवन में समानता का
भाव जग जाये तो सारे दुःख एक क्षण में समाप्त हो जायेंगे.
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ReplyDeletehttp://jobhidilkahe.blogspot.in/
सादृश्य का बोध हमें परमात्मा की ओर ले जाता है....................
ReplyDelete" यदि हमारे जीवन में समानता का भाव जग जाये तो सारे दुःख एक क्षण में समाप्त हो जायेंगे" समरसता ही आनन्द का मूल है । सुन्दर - प्रस्तुति ।
ReplyDeleteराहुल जी व शकुंतला जी, स्वागत व आभार
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