Monday, May 11, 2015

अहंकार मिटते ही सुख है

फरवरी २००९ 
मनुष्य सुखी होने के बजाय, खाली होने की बजाय भरा होना ज्यादा पसंद करता है. चाहे वह दुःख से क्यों न भरा हो. दुःख न हो तो मनुष्य काल्पनिक दुःख पैदा करता है. अहंकार दुःख पर ही जीवित रहता है, दुःख ही उसका भोजन है, ‘मैं’ टिका ही दुःख पर है, छोटे-मोटे दुःख से उसका काम नहीं चलता, वह बढ़ा-चढ़ा कर दुःख को व्यक्त करता है. वह खुद ही दुःख बनाता है. सुखी के सब दुश्मन हो जाते हैं, दुखी के साथ सब सहानुभूति व्यक्त करते हैं.


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