Friday, September 23, 2022

खुद को जिसने चेतन जाना

हरेक मानव को अपने होने का आभास होता है। स्वयं के होने में किसी को संदेह नहीं है। जड़ वस्तु स्वयं को नहीं जान सकती। पर्वत नहीं जानता कि वह पर्वत है। केवल चेतन ही खुद को  जान सकता है। परमात्मा पूर्ण चैतन्य है। चेतना का स्वभाव एक ही है, जैसे बूँद हो या सागर दोनों में जल एक सा है। वही चेतना हर सजीव के भीतर उपस्थित है जो परमात्मा के भीतर है। इस तरह जीव और परमात्मा एक तत्व से निर्मित हैं। जीव यानी हम उससे पृथक हो ही नहीं सकते। शास्त्रों में ‘सोहम’ इसीलिए गाया है, अर्थात हम वही हैं। किंतु यदि हम स्वयं को जड़ देह अथवा मन मानते हैं तो हमारी आस्था का केंद्र भी भौतिक व दैविक होगा। अधिकतर मानव जड़ वस्तुओं की पूजा करते हैं या देवी-देवताओं से मन्नत माँगते हैं। शुद्ध चैतन्य के रूप में परमात्मा, स्वयं को चेतन जानने से प्रकट होता है; जिसे जानने के बाद जीवन से भय, असुरक्षा, अभाव, विषाद आदि जो कुछ भी जड़ता के साथ जुड़ा हुआ है, वह समाप्त हो जाता है। पुराने संस्कारों के अनुसार देह व मन से कर्म होते हैं पर आत्मा उनसे बंधती नहीं है। वह स्वयं के शुद्ध स्वरूप तथा परमात्मा से निकटता का अनुभव करती है।   


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