Sunday, December 5, 2021

तोरा मन दर्पण कहलाये

हमारा तन स्वस्थ रहे ताकि हम साधना कर सकें, साधना करें ताकि मन स्वस्थ रहे, मन स्वस्थ रहे ताकि अंतर साधना हो सके, अंतर साधना हो ताकि मन निर्मल हो, मन निर्मल हो ताकि उसमें परम सत्य का प्रकाश हो, परम सत्य को पायें क्यों कि सत्य ही शिव और सुंदर है, शिव को पायें ताकि हम सभी के लिए सुखद हो जाएँ, हमारे होने से जड़-चेतन किसी को कोई उद्वेग न हो, न ही हमें किसी से कोई उद्वेग हो. सौन्दर्य को पाकर हम चारों ओर सुन्दरता बिखेरें. कुछ भी ऐसा न कहें, सोचें, न करें जो इस जगत को क्षण भर के लिए भी असुन्दर बना दे. ईश्वर की इस सुंदर सृष्टि को देख-देख हम चकित होते हैं, विभोर होते हैं, भीतर प्रेम का अनुभव करते हैं तो और भी चकित होते हैं, कैसे अद्भुत भाव भीतर जगते हैं, यह क्या है? कौन है? किसे अनुभव होता है? कौन अनुभव कराता है? कौन प्रेम देता है? कौन प्रेम लेता है ? ये सारे भाव शब्दों की पकड़ में नहीं आते. संतों की आँखों से ये पल-पल झरते हैं.

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