Friday, December 3, 2021

तीन के जो भी पार हुआ है

जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तीनों जिस पृष्ठभूमि पर घटते हैं वह एक रस अवस्था है.  बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था तीनों को जो कोई एक अनुभव करता है वह इन तीनों से परे है. भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक इन तीनों प्रकार के दुखों का जो साक्षी है वह इनसे परे है. मन, बुद्धि और संस्कार इन तीनों के भी परे है, सत्व, रज और तम इन तीन गुणों से भी वह अतीत है. यह सब हम शास्त्रों में पढ़ते हैं किन्तु इस पर कभी चिंतन नहीं करते. जागते हुए जो संसार हम देखते हैं वह स्वप्न और नींद में विलीन हो जाता है, स्वप्न में जो दुनिया दिखाई देती है वह आँख खुलते ही गायब हो जाती है, और गहरी नींद में तो व्यक्ति को यह भी ज्ञान नहीं रहता कि वह कौन है ? लेकिन हमारे भीतर कोई एक है जो पीछे रहकर सब देखता रहता है. जो कुछ हम जाग कर करते हैं, या स्वप्न में या नींद गहरी थी या हल्की, वह सब जानता है. बचपन से लेकर वर्तमान की स्मृतियों को जो अनुभव कर रहा है वह मन तो रोज बदल जाता है पर कोई इसके पीछे है जो कभी नहीं बदलता. आज तक न जाने कितने सुख दुःख के पल जीवन में आये, जो इनसे प्रभावित नहीं हुआ वह चैतन्य ही गुणातीत है. ध्यान में जब मन व बुद्धि शांत हो जाते हैं, तब जो केवल अपने होने मात्र का अनुभव होता है, वह उसी के कारण होता है. वह अनुभव शांति और आनंद से मन को भर देता है. इसीलिए हर धर्म में ध्यान को इतनी महत्ता दी गयी है. 


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