संशय आत्मा के पतन का सबसे बड़ा कारण है। स्वयं पर संशय हमें हमारी पूर्ण क्षमता से परिचित ही नहीं होने देता। हरेक के भीतर परमात्मा समान रूप से विराजमान है, अब यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपने मन को एक चम्मच जितना बनाए या एक विशाल सागर जितना। हम अपनी सजगता और विश्वास के द्वारा ही मन की अज्ञात शक्तियों का पता पा सकते हैं जो भीतर हैं। अपने आस-पास के व्यक्तियों पर संशय और भी हानिकारक है, यह मन पर एक ऐसा आवरण डाल देता है कि हमें उनकी सच्ची और अच्छी बातें भी नज़र नहीं आतीं। हम वास्तव में उन व्यक्तियों से परिचित ही नहीं हो पाते, बल्कि अपने चारों ओर बने एक दायरे में ही क़ैद रह जाते हैं और जीवन प्रतिपल बीतता जाता है। गूरू और शास्त्र पर संशय न केवल हमें जीवन के वास्तविक स्वरूप से वंचित करता है बल्कि उस आनंद से भी जिस पर हर आत्मा का जन्मसिद्ध अधिकार है।
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