जैसे गागर माटी की बनी है, टूट जाए तो माटी का कुछ नहीं बिगड़ता, वैसे ही मन आत्मज्योति से उपजा है; मन उदास हो, चिंतित हो तो ज्योति का कुछ नहीं घटता। आत्मा का न कोई आकार है न ही उसमें कभी कोई विकार होता है। मन को सुख और पूर्ण विश्राम पाना हो तो कुछ देर के लिए सब कुछ भुलाकर स्वयं से मिलना सीखना होगा। मन का काम है सोचना, वह कभी एक जगह टिककर रहना नहीं जानता, इसी कारण अपनी ऊर्जा को व्यर्थ ही खर्च करता है, आत्मा ऊर्जा का स्रोत है, उससे जुड़कर वह सहज ही अपनी शक्ति को कई गुणा बढ़ा सकता है। मन जब यह जान लेता है तो अपने मूल से जुड़ जाता है, गहरी नींद में व ध्यान में मन वहीं पहुँच जाता है। आत्मा के साथ एक होकर वह उसी तरह अमरता का अनुभव करता है जैसे घड़ा मिट्टी में मिलकर उससे एक हो जाता है, जिसका कभी नाश नहीं होता।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(30-11-21) को नदी का मौन, आदमियत की मृत्यु है" ( चर्चा अंक4264)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteस्वागत व आभार!
Deleteमेरे ब्लॉग पे भी पधारने की कृपा करे धन्यवाद
ReplyDeleteअवश्य
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