Sunday, November 21, 2021

सुख-दुःख के जो पार मिलेगा

जीवन सुख-दुःख का मिश्रण है, पर इसको देखने वाला मन यदि इसके पार जाने की कला सीख ले तो जीवन एक खेल बन जाता है। अनादि काल से न जाने कितने लोग इस भूमि पर जन्मे और चले गए। प्रतिक्षण नए सितारों के जन्म हो रहे हैं और कुछ काल के गाल में समा रहे हैं। थोड़ा सा समय और कुछ ऊर्जा हमें मिली है कि अपने भीतर उस स्रोत को पा लें जो सुख-दुःख के पार है। मन यदि स्वयं में संतुष्ट होना सीख जाए तो खुद के परे जाने की हिम्मत कर सकता है, जो मन अभी तृप्त नहीं हुआ,  वह तो संसार को पाने की उधेड़बुन में ही लगा रहेगा। मन यदि रिक्तता का अनुभव करेगा तो उसे भोजन, धन, वस्तुएँ, यश आदि से भरना चाहेगा, इस भरने में वह कभी सफल नहीं हो सकता क्योंकि ख़ाली होना मन का स्वभाव है। उसे शून्य के अतिरिक्त किसी भी वस्तु से भरा नहीं जा सकता। इच्छाओं की पूर्ति के द्वारा न अतीत में न ही भविष्य में कोई सुख-दुःख के पार जा सकता है। ध्यान-साधना के द्वारा मन के इस स्वभाव को जानना है और अपने भीतर आनंद के स्रोत का अनुभव करना है, जो सुख-दुःख दोनों के पार है। 


6 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
    (23-11-21) को बुनियाद की ईंटें दिखायी तो नहीं जाती"( चर्चा अंक 4257) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. सुंदर प्रस्तुति.

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  3. अद्भुत लेखनि धन्यवाद

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