यदि आत्मा को हम सूर्य समान कहते हैं तो मन की उपमा चंद्रमा से दी जाती है। सूर्य निज प्रकाश से स्वयं को प्रकाशित करता है पर चाँद सूर्य के प्रकाश को ही परावर्तित करता है। आत्मा चैतन्य है, पर मन परावर्तित चेतना से प्रकाशित होता है।यदि मन पर विचारों के घने बादल छाए हों तो चेतना घट जाएगी, मन अति चंचल हो तो चेतना बिखर जाएगी। जब हम नींद में होते हैं तब चेतन मन सो जाता है, हमें अपना भान ही नहीं रहता, नींद में राजा और रंक एक समान हो जाते हैं। जागते हुए भी हम कितनी बार दिवास्वप्न में खो जाते हैं, विचार हमें कहीं से कहीं ले जाते हैं, तब हम स्वयं को भूल ही जाते हैं। जब कोई समान रखकर बाद में याद न आए तो समझना होगा कि उसे रखते समय मन कहीं घूमने गया था। इसीलिए ध्यान का इतना महत्व है, ध्यान में हम सीखते हैं कि मन को कैसे वर्तमान में रखा जाए, तब आत्मा का पूरा प्रकाश मन से झलकेगा और हम अपने वास्तविक स्वरूप से परिचित हो पाएँगे।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26.11.2021 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4260 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग
बहुत बहुत आभार!
Deleteबहुत सुंदर आध्यात्मिक चिंतन और दर्शन।
ReplyDeleteसाधुवाद।
स्वागत व आभार!
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