Tuesday, November 23, 2021

शुभता का जो वरण करे

सृष्टि परमात्मा के संकल्प से उपजी है। यहाँ जो कुछ भी सुंदर है, कल्याणकारी है, किसी के शुभ विचारों का परिणाम है और जो कुछ भी असुंदर है, विनाशकारी है, वह भी किन्हीं  अशुभ संकल्पों का परिणाम है। जीवन में जो भी घटता है, वह किसी न किसी क्षण में भीतर उठे विचारों से ही प्रकट हुआ है। विचारणा सूक्ष्म कर्म है जो अंतत: स्थूल रूप में प्रकट होता है। इसीलिए कहा गया है कि हम आत्मा में रहकर शुभ संकल्प ही करें, मन की यह आदत है कि वह तात्कालिक सुख की लालसा में अपना भला-बुरा नहीं सोचता, वह प्रेय मार्ग का पथिक है। मन एक पुराने ढर्रे पर ही चलता है, जिसपर चलकर उसने पहले कष्ट भी उठाए हों, तब भी वह उस लीक को चुन लेता है। आत्मा में रहने का अर्थ है सदा वर्तमान में रहना, वह श्रेय पथ पर चलने का मार्ग है, अर्थात् श्रेष्ठ को चुनने का मार्ग, जो स्वयं के साथ साथ जगत के लिए भी शुभता ही लाता है।

5 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२५-११-२०२१) को
    'ज़िंदगी का सफ़र'(चर्चा अंक-४२५९ )
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार अनीता जी!

      Delete
    2. मन एक पुराने ढर्रे पर ही चलता है, जिसपर चलकर उसने पहले कष्ट भी उठाए हों, तब भी वह उस लीक को चुन लेता है। आत्मा में रहने का अर्थ है सदा वर्तमान में रहना।।
      मन और आत्मा पृथक!बहुत ही चिन्तनपरक सृजन।

      Delete
  2. दार्शनिक भाव! सत्य है भुवन में फिर वही दिखाई देता है जो हमारे मन के भावों की प्रतीछाया होती है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. स्वागत व आभार कुसुम जी !

      Delete