Monday, October 15, 2018

भाव जगे जब निज स्वरूप का


१५ अक्तूबर २०१८ 
संत कहते हैं, “न अभाव में रहो, न प्रभाव में रहो, मात्र निज स्वभाव में रहो” यह छोटा सा सूत्र जीवन में परिवर्तन लाने के लिए अति सहायक सिद्ध हो सकता है. शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता, उत्साह, उदारता, सृजनात्मकता, कृतज्ञता, सजगता आदि हमारे सहज स्वाभाविक गुण हैं, जब हम इनमें या इनमें से किसी के भी साथ होते हैं, हमें न कोई अभाव प्रतीत होता है, न ही किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति का प्रभाव हम पर पड़ता है. अभाव का अनुभव करते ही हम तत्क्षण स्वभाव से दूर चले जाते हैं. इसी प्रकार किसी के गुणों, वैभव आदि से प्रभावित होते ही भीतर हलचल होने लगती है, शांति खो जाती है. शास्त्र हमें समझाते हैं, हमारा निज स्वभाव अनंत शांति से भरा है, वह परमात्मा से अभिन्न है. हर जीव उसी परमशक्ति का अंश है, उसे भला किस वस्तु का अभाव हो सकता है. देह एक साधन है, जिसे बनाये रखने के लिए पर्याप्त संपदा हमें प्राप्त है. जिन्हें भोजन, वस्त्र और निवास प्राप्त हैं, उन्हें यदि कोई अभाव सताता है तो यह अज्ञान से ही उत्पन्न हुआ है.


8 comments:

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    1. स्वागत व आभार सुशील जी !

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  2. https://bulletinofblog.blogspot.com/2018/10/blog-post_15.html

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  3. सुंदर सूत्र जीवन के ...

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    1. स्वागत व आभार दिगम्बर जी !

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  4. अनमोल दोहे
    11 hours ago
    काम क्रोध सब त्यागि के, जो रामै गावै।
    दास मलूका यूँ कहैं, तेहि अलख लखावै॥

    ~ संत मलूकदास जी ने कहा है कि जो व्यक्ति काम, क्रोध सब त्याग कर राम/ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं उन्हीं पर ईश्वर की कृपा भी बेशुमार होती है।

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  5. स्वागत व आभार अशोक जी !

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