२५ अक्तूबर २०१८
जीवन हर पल हमें बुलाता है, यहाँ अवसरों की कमी नहीं है. छोटे
से छोटे सा पल भी अपने भीतर एक अनंत को धारण किये है, जैसे छोटा सा परमाणु असीम
ऊर्जा को अपने भीतर छिपाए है. संत कहते हैं, वास्तव में जीवन एक दर्पण है जिसमें
हम वही देख लेते हैं जो देखना चाहते हैं. हमारा अंतर्मन ही हमारे व्यवहार में
झलकता है और हमारी प्रतिक्रियाओं में भी, यदि भीतर भय है तो अँधेरे में हर वस्तु
हमें भयभीत करने वाली नजर आयेगी. यदि भीतर क्रोध है तो छोटी-छोटी बातों पर झुंझलाहट
के रूप में वह व्यक्त होगा. यदि भीतर अहंकार है तो हर कोई अपना प्रतिद्वन्दी दिखाई
देगा. जीवन का हर अनुभव हमें स्वयं को परखने का जानने का एक अवसर देने के लिए है.
जिस दिन भीतर कुछ नहीं रहेगा, जगत जैसा है वैसा अपने शुद्ध रूप में पहली बार दिखाई
देगा. क्या सारे उत्सव इसी अंतर परिवर्तन की ओर इशारा करते प्रतीत नहीं होते हैं ?
हर उत्सव में पूजा को जोड़ दिया गया है, इसका अर्थ है कि परमात्मा की आराधना करके
भीतर की शक्ति को जगाना है ताकि प्रमाद, क्रोध, अहंकार अदि दानवों का नाश हो और हम
अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव कर सकें.
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