२९ अक्तूबर २०१८
जीवन नित नये रूपों में ढल रहा है.
हर साँझ एक नये अंदाज में संवरती है और हर रात्रि एक नयापन लेकर विश्राम के लिए
निमन्त्रण देती है. किसी भी क्षण यदि कोई रुककर प्रकृति के इस विशाल आयोजन को देखे
तो उसका मन विस्मय से भर जाता है. विशालकाय पर्वत, गरजते हुए जलप्रपात और हरी-भरी
घाटियाँ जाने किस आगन्तुक की प्रतीक्षा में युगों से स्थित हैं. सम्भवतः जीवन की
जिस ऊर्जा से वे स्पन्दित हैं, वही भीतर-भीतर उसका रसास्वादन कर रही है. एक नन्हे
से जीव में जो ऊर्जा गति देती है, वही उसे जीवन के प्रति गहन प्रेम से भी भर देती
है, उसे भी अपना जीवन प्रिय है. हमारे भीतर जो भी शुभ है, वह उसी प्रकृति से आया
है, अशुभ विकृति है. प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन ही मानवीय मूल्यों पर
आधारित जीवन हो सकता है. मानव जल, हवा व धरती को यदि शुद्ध नहीं रख पाया है तो
इसका अर्थ है उसने अपने मूल्यों के विपरीत जीवनशैली को अपना लिया है.
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