८ अक्तूबर २०१८
जो अहंकार मानव के दुःख का कारण है, आपसी द्वेष को जन्म देता
है, एक छाया मात्र ही है. वास्तव में हम प्रकाश स्वरूप दिव्य आत्मा हैं. यह प्रकाश
जब प्रकृति रूपी मन, बुद्धि आदि पर पड़ता है, तो अवरोध के कारण जो छाया बनती है, वही
अहंकार है. जब मन खाली होता है, जल की तरह
बहता रहता है, मान्यताओं और पूर्वाग्रहों से युक्त होकर कठोर नहीं होता, तब गहरी छाया
भी नहीं बनती. इसीलिए बुद्धि को निर्मल बनाने पर संत और शास्त्र इतना जोर देते रहे
हैं. अहंकार का भोजन दुःख है, वह राग-द्वेष से पोषित होता है, आत्मा आनंद से बनी है,
वह आनन्द ही चाहती है, लेकिन अहंकार इसमें बाधक बनता है, यही द्वंद्व मानव को सुखी
होने से रोकता है. यह सुनकर साधक अहंकार को मिटाने का प्रयत्न करने लगते हैं,
किन्तु छाया से भयभीत होना ही सबसे बड़ा अज्ञान है, क्योंकि छाया का अपना कोई
अस्तित्त्व नहीं है. छाया को मिटाया भी नहीं जा सकता, हाँ, प्रकाश के बिलकुल नीचे
खड़े होकर छाया को बनने से रोका जा सकता है.
बहुत बहुत आभार यशोदा जी !
ReplyDeleteबहुत सुंदर आध्यात्मिक रचना ।
ReplyDeleteस्वयं को साधो उस कोण पर जहां छाया स्वयं में ही समाहित हो जाऐ।
वाह
सही कहा है आपने..स्वागत व आभार कुसुम जी !
Deleteवाह!!बहुत खूब!!
ReplyDeleteस्वागत व आभार शुभा जी !
Deleteवाह !आदरणीय अनिता जी -- रोहितास जी के सौजन्य से आपकी ये अध्यात्मिक पंक्तियाँ पढ़ी | आत्म बोध से भरा ये चिंतन अनमोल है | सही परिभासित किया है आपने अहंकार को | वास्तव में अंहकार की यही मलिन छाया आत्मा को दूषित करती है | जो इससे बच गया वही आत्मज्ञानी कहलाया | सादर आभार |
ReplyDeleteवाह आदरणीय अनिता जी | बहुत सटीक परिभाषा लिख दी आपने अहंकार की | आत्म बोध से भरा ये चिंतन अनमोल है |अहंकार की मलिन छाया ही दिव्यता से भरी आत्मा को ढक लेती है |जो इससे बच गया वही आत्मज्ञानी कहलाया | सादर आभार और नमन | आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा रोहितास जी का आभार |
ReplyDeleteअहंकारी आदमी तो जिंदगी पर भार है
ReplyDelete