१६ अक्तूबर २०१८
पंचभूतों से यह सारी सृष्टि बनी है और हमारा शरीर भी इन्हीं से बना
है. पृथ्वी तत्व ठोस है, जल द्रवीय, वायु गैसीय और अग्नि इनमें से कोई भी नहीं,
आकाश इन सबसे परे है जो सदा शुद्ध है.
अग्नि तत्व भी कभी अशुद्ध नहीं होता, इसकी मंदता या अधिकता हो सकती है. देह
में सत्तर प्रतिशत से अधिक है जल तत्व, यदि यह अशुद्ध हो जाये तो शरीर स्वस्थ कैसे
रह सकता है. आज वायु भी प्रदूषित हो चुकी है, पृथ्वी में अति रासायनिक तत्व मिला
दिए गये हैं. शास्त्र कहते हैं, यदि चेतना शुद्ध हो तो उसका प्रभाव इन भौतिक
तत्वों को परिवर्तित कर सकता है. चेतना को शुद्ध करना योग साधना द्वारा ही सम्भव
है. पांच यमों - सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय तथा पांच नियमों - शौच,
संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान में से किसी एक के भी पालन से मन स्वस्थ रहता है तथा आसन, प्राणायाम
व प्रत्याहार से देह को स्वस्थ रखा जा सकता है. तत्पश्चात धारणा, ध्यान व समाधि के
द्वारा जीवन की पूर्णता को अनुभव किया जा सकता है.
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