Wednesday, October 16, 2013

प्रभु जी ! तुम चन्दन हम पानी

मार्च २००५ 
मन रे कर सुमिरन हरि नाम ! नाम लिए से मिट जाते हैं जन्म-जन्म के काम ! ईश्वर के बिना हमारे लिए कोई रक्षक नहीं, हमारे तथाकथित प्रेम आदि (मोह) ही हमें दुःख की ओर लिए जाते हैं, बंधन में डालने वाला यह स्वार्थ ही तो है, ईश्वर हमें इससे छुड़ाता है और अमरता के उस परम पद तक पहुंचा देता है जहाँ से फिर पतन नहीं होता. वह हमारा हितैषी है, सुह्रद है, अकारण दयालु है, प्रेममय है, रस मय है, वह जो है, जैसा है आज तक कोई बखान नहीं कर पाया. वह हमारे कुम्हलाये हुए मन को ताजगी से भर देता है, अनंत शक्ति का भंडार है, वह हमें अनेकों बार सम्भलने का मौका देता है, सदा हमारी रखवाली करता है, जैसे ही हम उसकी ओर कदम बढ़ते हैं, वह हाथ थाम लेता है. हमारे साथ प्रेम का आदान-प्रदान करने के लिए सदा तत्पर है. एक बार प्रेम से पुकारते ही वह हमारे मन को अपने जवाब से भर देता है. उसे हमारी योग्यता की नहीं हमारे प्रेम की चाह है, वही सच्चा प्रेमी है, हम तो प्रेम के नाम पर व्यापार करते हैं. वह परमात्मा हमारी आत्मा की भी आत्मा है.


6 comments:

  1. सुंदर सारगर्भित ....तत्व पूर्ण अभिव्यक्ति अनीता जी ....

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  2. सारगर्भित ... तार्किक आलेख ...

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  3. मन रे कर सुमिरन हरि नाम !

    नाम लिए से मिट जाते हैं जन्म-जन्म के काम !

    जैसे ही हम उसकी ओर कदम बढ़ते हैं,------बढ़ातें हैं …। वह हाथ थाम लेता है. हमारे साथ प्रेम का आदान-प्रदान करने के लिए सदा तत्पर है. एक बार प्रेम से पुकारते ही वह हमारे मन को अपने जवाब से भर देता है. उसे हमारी योग्यता की नहीं हमारे प्रेम की चाह है, वही सच्चा प्रेमी है, हम तो प्रेम के नाम पर व्यापर करते हैं. वह परमात्मा हमारी आत्मा की भी आत्मा है.

    सर्व सम्बन्ध एक उसी से जोड़ो। सुन्दर प्रवचन।

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  4. एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

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  5. " प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी जा की अँग-अँग बास समानी ।" रैदास । " तुम मृदु-मानस के भाव और मैं मनोरंजनी भाषा । तुम नन्दन-वन घन विहग और मैं सुख - शीतल तरु शाखा । तुम प्राण और मैं काया, तुम शुध्द सच्चिदानन्द ब्रह्म मैं मनोमोहिनी माया ।" निराला

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  6. अनुपमा जी, दिगम्बर जी, वीरू भाई, मनोज जी व शकुंतला जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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