मार्च २००५
ईश्वर प्रेम
स्वरूप है, आनन्द स्वरूप है, ज्ञान स्वरूप है. वही सबमें है सब उसमें हैं अथवा तो
वही सब है. हम एक क्षण के लिए भी बल्कि एक क्षण के शतांश के लिए भी उससे पृथक नहीं
हो सकते, वह है तो हम हैं फिर भी वह हमें दिखाई नहीं देता. हरेक कण में परमात्मा सुप्त
अवस्था में है, इसे जगाना ही साधना है. सब जगह व्याप्त चैतन्य को रिझाना और
आत्मसात करना है. जो प्रकट न हो फिर भी उससे प्रेम करना, यही तो श्रद्धा है. प्रेम
भाव से तल्लीन हो जाना ही चैतन्य को कण-कण में जगाना है. वह तो पहले से है ही, पर
हमें जब तक अनुभव न हो तब तक हमें उसे पुकारना है. हम जैसे सोये हुए से सचेत हो
जाते हैं. भीतर की चेतना यदि पूर्ण जागृत न हो तो इन्सान सोया हुआ ही कहा जायेगा.
जगा हुआ ही अपनी पूर्ण जिम्मेदारी ले सकता है, अपने कर्मों, वाणी तथा विचारों के
प्रति सावधान होता है.
ज्ञान पूरक आलेख !
ReplyDeleteनवरात्रि की शुभकामनाएँ .
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
स्वागत व आभार !
Deleteबहुत सशक्त भावाभिव्यक्ति। जो कण कण में व्याप्त है वह निराकार ब्रह्म है ,जो हमारे वक्षस्थल में है वह परमात्मा है और जो विभिन्न रूपों में अनेक बार अवतरित होता है कभी राम कभी कृष्ण वह भगवान् सच्चिदानंद है वह सत (सत्य )भी है चित (ज्ञान )भी है आनंद भी। ब्रह्म से सत्य की परमात्मा से सत्य और ज्ञान दोनों की और लीला पुरुष से सत -चित -आनंद की एक साथ प्राप्ति होगी। वही WHOLE है ,COMPLETE GODHEAD है।
ReplyDeleteसही कहा है वीरू भाई !
Delete" तुम मृदु-मानस के भाव और मैं मनोरंजनी भाषा । तुम नन्दन-वन-घन-विहग और मैं सुख-शीतल-तरु-शाखा। तुम प्राण और मैं काया, तुम शुध्द सच्चिदानंद ब्रह्म मैं मनोमोहिनी माया ।" निराला
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ शकुंतला जी
Deleteजगा हुआ ही अपनी पूर्ण जिम्मेदारी ले सकता है, अपने कर्मों, वाणी तथा विचारों के प्रति सावधान होता है.
ReplyDeleteज्ञान परक आलेख आभार
स्वागत व आभार रमाकांत जी
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