मार्च २००५
‘ईश्वर
को उसकी कृपा के बिना नहीं पाया जा सकता’. ध्यान में जब हम श्वास को देखते हैं,
देखते-देखते वह सूक्ष्म हो जाती है, सूक्ष्मतर होती जाती है, उसे देखने वाला मन भी
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होता जाता है. नासिका के अग्रभाग पर आती-जाती हुई श्वास एक
पतले धागे की तरह प्रतीत होती है, बहुत सूक्ष्म धागे की नाईं वह भीतर वह बाहर आती
जाती है. मन में कोई विचार उठा तो श्वास
पर उसका प्रभाव होता है. अप्रिय विचार हो तो ऊष्मा का, गर्मी का, जलन का अहसास
होता है, सुखद विचार हो तो ठंडक या सुख का अहसास होता है. मन में उठने वाले
विचारों के साथ-साथ श्वास की गति भी बदल जाती है. वह सम नहीं रह जाती, कभी तेज हो
जाती है, कभी कठोर हो जाती है. मन पर कोई आघात होते ही उसका पहला भाग सजग हो जाता
है, दूसरा भाग यह जानना चाहता है कि यह क्या है, तीसरा भाग उसके प्रति राग-द्वेष
जगाता है, चौथा भाग उस राग-द्वेष के प्रति संवेदना जगाता है. हम देखते हैं कि देह
में कुछ भी स्थूल नहीं है सब कुछ तरंग मय है, मन के विचार भी आते हैं और नष्ट हो
जाते हैं. यदि पहले कदम पर ही हम सजग हो जाएँ कि जो भी सूचना बाहर से मिली है, उस
पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी है तो हम दुखों से सदा के लिए बच सकते हैं.
प्रतिक्रिया नहीं करनी है तो हम दुखों से सदा के लिए बच सकते हैं.
ReplyDeleteसुंदर विचार !
RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
ईश्वर को उसकी कृपा के बिना नहीं पाया जा सकता .... बिल्कुल सच कहा आपने
ReplyDelete‘ईश्वर को उसकी कृपा के बिना नहीं पाया जा सकता’.
ReplyDeleteसुंदर बात ....!!
" मरने से ये जग डरे मेरो मन आनन्द कब मरिहौं कब भेंटिहौं पूरन परमानंद ।"कबीर ।
ReplyDeleteबहुत खूब ,बेहद सुन्दर सार्थक विचार सरणी !भाव गंगा !सुभान!अल्लाह !
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी, सदा जी, अनुपमा जी, शकुंतला जी व वीरू भाई आप सभी का स्नेह स्वागत व आभार !
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