अधिकतर लोग यह मानते हैं कि बाहर से जीवन में कोई कमी न दिखाई देते हुए भी उनके दिल में इक खुदबुद सी लगी रहती है। कोई व्यक्ति वास्तव में चाहता क्या है, उसे इसकी खबर भी नहीं होती।संभवत: हर किसी की तलाश एक ऐसी शांति या सुकून की है, जो सदा-सदा के लिए भीतर का ख़ालीपन भर दे।वस्तुओं से बाज़ार भरा पड़ा है, किंतु वहाँ ऐसा कुछ नहीं मिल सकता जो इस अभाव को भर दे। इस तरह जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, यह बेचैनी दिनबदिन बढ़ती जाती है । एक दिन यही किसी न किसी रोग के रूप में प्रकट होती है।बेचैनी ज्यों ज्यों बढ़ती है, मन का सुकून घटता जाता है कोई इसे परिवार, मित्रों या चिकित्सक से बयान करता है, कोई इसके बारे में कुछ नहीं बताता। स्वयं ही ही मुक्त होने का उपाय खोजता है, किंतु वह यह भूल जाता है कि जिस मन ने इसे खड़ा किया है, वही मन इससे मुक्ति का उपाय कैसे बता सकता है।जो इसे दूर करे, वह दवाई कहीं बाहर नहीं मिलती। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है, गुरु की शरण में जाना चाहिए, सत्संग करना चाहिए। गुरु और शास्त्र बताते हैं कि मन की तलाश अपने भीतर जाकर ही मिट सकती है। स्वयं से दूरी ही मानव को बेचैन करती है। जब तक कोई अपने होने को वास्तव में अनुभव नहीं कर लेता, बाहर के सुख और सुविधाएँ उसे वह शांति प्रदान नहीं कर सकते, जो वह चाहता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" बुधवार 22 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार यशोदा जी !
Deleteसही बात | गुरु जरूरी है | बहुत से गुरु हैं भी चारों और देखें तो :) |
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteरास्ता अपनी तरफ़ ही मुड़ता है.
ReplyDeleteसही है, स्वागत व आभार !
Deleteबाहरी सुख भौतिक है, जो कभी पूरी नहीं हो सकती। मन की शांति तो अपने अंदर ही है।
ReplyDeleteआपने सही कहा है, स्वागत व आभार !
Deleteविचारपरक लेख! वैसे अच्छा और अनुकूल साहित्य सबसे बड़ा गुरु सिद्ध हो सकता है, अगर तन्मयता व एकनिष्ठता से उसका अध्ययन किया जाये, ऐसी मेरी मान्यता है।
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं, अच्छा साहित्य अवश्य मार्गदर्शक होता है लेकिन संभवत: स्वयं से मिलने के लिये किसी ऐसे व्यक्ति का मार्गदर्शन चाहिए जो ख़ुद इस राह पर गया हो
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