Tuesday, July 5, 2011

अनंत की चाह


अगस्त २००० 
मन की आसक्ति को, चाह को, प्रेम को अगर दिशा मिल जाये, भावनाओं को विचारों को केन्द्र मिल जाये तो जीने की कला अपने आप ही आ जाती है, यदि चाह नश्वर की हो तो सुख भी नश्वर ही तो मिलेगा, मन में अनंत की चाह हो तभी अनंत की ओर कदम बढ़ेंगे. जहाँ योग नहीं वहाँ भोग होगा और रोग भी हो सकता है. जहाँ राम नहीं वहाँ कामनाएँ होंगी जो अशांति का कारण बनेंगी... जीवन का संघर्ष द्वंद्वात्मक है, किन्तु परमात्मा सदा एक सा है.

1 comment:

  1. तभी तो कहते हैं की हमेशा राम नाम का जप करते रहो .हाथ में काम हो पर मन में हमेश राम का वास हो.रावण को भी मुक्ति मिल गई क्योंकि दुश्मनी में ही सही उसका केंद्रबिंदु तो राम ही थे .

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