Wednesday, July 27, 2011

भीतर-बाहर


अहंकार रूपी पवन हमारी मन रूपी तरंग को संसार सागर के तट से टकराती रहती है. जो हम इस दुनिया को बांटते हैं, वही हमें वापस मिलता है. सारा ब्रह्मांड एक प्रतिबिम्ब है एक प्रतिध्वनि है. हम जैसा दिखाना चाहते हैं, देखना चाहते हैं, वही हमें दिखाई पड़ता है. जो कुछ बाहर है वही भीतर है और जो कुछ भीतर है वही बाहर है. बाहर की सच्चाई को हम बुद्धि के स्तर पर समझ सकते हैं पर भीतर के सत्य को अनुभूति के स्तर पर समझना होगा. प्रतिपल अंतर को साक्षी भाव से देखने की कला विकसित करनी है. जो भी स्फुरणा जगे उसके प्रति सजग होकर संवेदना को देखना है. धीरे धीरे संवेदना शांत होती जाती है और स्फुरणा भी शांत होती जाती है. 

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