कृष्ण व्यापक है, परम सत्य व्यापक है
किन्तु मद तथा मूढ़ता के कारण हम उसे देख नहीं पाते. जब हम सत्य की खोज में निकलते
हैं तो मन भटकाता है, हम केंद्र से दूर हो जाते हैं. सत्य खोजने से नहीं मिलता
बल्कि हम जहाँ हैं वहीं उसे प्रकट कर सकते हैं. सत्य शास्त्र से भी नहीं मिलता,
शास्त्र उसका अनुमोदन भर करते हैं. जब-जब हम धर्म के मार्ग पर चले हैं, उसी में
स्थित हैं. ईश्वर हमसे दूर नहीं है, वह तो निकटस्थ है, चाहे हम उसे याद करें अथवा न
करें, वह हमारी आत्मा की भी आत्मा है.
अत्यन्त निकट है वह परमात्मा पर हम स्वयं भटक जाते हैं ।
ReplyDeleteसुन्दर - प्रस्तुति ।
हम उसको देख कर भी अनदेखा कर देते हैं..वह हम से दूर कब होता है...
ReplyDeleteसही कहा है आप दोनों ने..वह तो हमारे ही भीतर है..
ReplyDelete