Saturday, September 18, 2021

ध्यान साधना होगा मन को

 ध्यान जब सधने लगता है तो कई अद्भुत अनुभव साधक को होते हैं. यह ज्ञात होता है कि हमारे भीतर कितनी सुंदरता छिपी है, जहाँ ईश्वर का वास है वहाँ सौंदर्य  बिखरा ही होगा. ईश्वर प्राप्ति की आकांक्षा को इन अनुभवों से बल मिलता है. शरीर की अवस्था चाहे कैसी भी हो, सत्संग, स्वाध्याय व साधना को कभी त्यागना नहीं है. बाहरी परिस्थितियां कैसी भी हों, अपने भीतर की यात्रा पर जाने से वे हमें रोकें नहीं. अनंत धैर्य के साथ धीरे-धीरे इस मार्ग पर बढ़ना होता है और हृदय में यह दृढ़ विश्वास लिये भी कि इसी जन्म में मंजिल मिलेगी. मन से ईश्वर का स्मरण कभी जाये नहीं तो मानना होगा कि उसने पूरी तरह इस पर अधिकार कर लिया है. सँग दोष  से बचना होगा और कमलवत् रहने की कला सीखनी होगी. वाणी का संयम व अन्तर्मुख होना भी आवश्यक है. संत कहते हैं, मधुमय, रसमय और आनन्दमय उस ईश्वर को पाना कितना सरल है. चित्त के विक्षेप से ही वह दूर लगता है लेकिन यह विक्षेप तो भ्रम है, टिकेगा नहीं. जबकि परमशक्ति  शाश्वत है, अटल है, आधार है सबका. वह कहीं जाती नहीं. केवल चित्त की लहरों को शांत कर उसका दर्पण स्वच्छ करना है. जो

No comments:

Post a Comment