इच्छा शक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान शक्ति के रूप में काली, लक्ष्मी और सरस्वती हमारे भीतर विद्यमान हैं। ये तीनों ही तमोगुण, रजो गुण तथा सतो गुण का भी प्रतीक हैं। तीनों गुणों के ऊपर एक ही ब्रह्म तत्व है। अलग-अलग नाम-रूप में वही एक तत्त्व समाया है। तीनों गुणों से पार जा कर ही मानव अपने सहज धर्म या स्वभाव का अनुभव करता है। सहज धर्म में स्थित रहना मानव को इन शक्तियों के शुद्ध रूप से जोड़कर रखता है। सहज धर्म से विचलन ही अहंकार है। आत्मा जब तीनों गुणों की साक्षी हो जाती है तो ब्रह्म तत्त्व में स्थित हो जाती है। उसे जानना ही आत्मसाक्षात्कार है।
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