Thursday, September 30, 2021

निज स्वभाव में टिक जाए जो

ईश्वर से यदि हमें प्रेम है तो यह सबसे सहज कार्य है, यह तो होना ही है, इसमें प्रयास करना पड़े तो हम असहज हो जाते हैं. ईश्वर है और हम हैं, और हममें प्रेम ही प्रेम है. जैसे सूरज है, दिन है, प्रकाश है. हमारा होना उतना ही सहज हो जाये जैसे साँस का आना-जाना तो हमें कोई अभाव नहीं रहता निज स्वभाव में रहते हैं, और प्रेम करना उसी तरह हमारा स्वभाव है जैसे कोयल का गाना और फूलों का खुशबू फैलाना. हमारे भीतर से दिव्य संगीत का फूटना भी उतना ही स्वाभाविक है और बंद आँखों को प्रकाश का दर्शन होना भी. स्वभाव में टिकते ही कुछ करना नहीं होता सब कुछ होने लगता है. कर्ता भाव नहीं रहता तो थकान का नाम भी नहीं रहता. अहंकार ही हमें विषाद ग्रस्त करता है, थकाता है दूसरों से पृथक करता है. अहंकार शून्य होते ही हम निर्भार हो जाते हैं फूल की तरह, हवा की तरह, आकाश की तरह. तब कोई प्रतिवाद नहीं, प्रतिरोध नहीं, आक्षेप नहीं, हम तब हम प्रकृति से अभिन्न हो जाते हैं.

2 comments:

  1. हम ही तो हैं ईश्वर। आप में निहित ईश्वर को मैं आपके लिखे शब्दों में अनुभूत कर रहा हूँ।

    ReplyDelete