हम जगत के लिए कैसे उपयोगी बनें यदि मन इसका चिंतन करे तो उसके सारे भय, आशंकाएँ और द्वंद्व खो जाएँगे। अहंकार केवल स्वयं के बारे में सोचता है और जैसे ही मन का विस्तार होता है, अहंकार के लिए कोई जगह नहीं बचती। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है सीमित में दुःख है, असीम में विश्राम है। अनंत ही हमारे मन को समाधान दे सकता है। स्वयं को जगत से पृथक मानना व जगत को स्वयं का विरोधी मानना ही तनाव का कारण है। तनाव से ही तन व मन के कई रोग होते हैं। जब हम सारे अस्तित्त्व को अपना ही विस्तार देखते हैं तो मन खो जाता है। देह पंच तत्त्वों के स्थूल भाग से बना है और मन उन्हीं के सूक्ष्म भाग से। इस प्रकार देह सृष्टि का ही एक छोटा अंश है और मन इस विशाल मन का। चेतना भी विश्व चेतना का ही भाग है। यहाँ हर वस्तु दूसरे से संयुक्त है। यह पूरा ब्रह्मांड एक ही जीवित इकाई है। यदि हम स्वयं को इसका एक अंश मानते हैं तो कोई विरोध या प्रतिद्वंदिता नहीं रह जाती। मन से सारा विषाद खो जाता है और एक अपूर्व शांति का अनुभव होता है।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(5-10-21) को "एक दीप पूर्वजों के नाम" (चर्चा अंक-4208) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार कामिनी जी !
Deleteबहुत ही बेहतरीन लेख
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteचिंतन मनन से परिपूर्ण बहुत सुंदर सारगर्भित आलेख।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deletevery nicely written and I really like your blog post so thank you so much for sharing this interesting post with us.
ReplyDeleteFree me Download krein: Mahadev Photo | महादेव फोटो