संत कहते हैं, जिसे अपने पता नहीं है उसे ही अभिमान, ममता, लोभ सताते हैं. मन का यह नाटक तब तक चलता रहता है जब तक हम अपने शुद्ध स्वरूप को नहीं जानते. खुद को जानना ही जीवन जीने की कला है. हम स्वयं के कण-कण से परिचित हों, मन और तन में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें. कब कौन सा विकार मन में उठ रहा है इसके प्रति तो विशेष सजग रहें. आधि, व्याधि और उपाधि के रोग से हम सभी ग्रसित हैं, जो क्रमशः मन, तन और धन के रोग हैं, इनका इलाज समाधि है. समाधि में मन यदि समाहित रहे तो कोई दुःख नहीं बचता. क्रोधित होते हुए भी भीतर कुछ ऐसा बचा रहता है, जिसे क्रोध छू भी नहीं पाता, भीतर एक ठोस आधार मिल जाता है, चट्टान की तरह दृढ़. तब कोई भयभीत नहीं कर सकता न किसी को हमसे भयभीत होने की आवश्यकता रहती है. वास्तविक जीवन तभी शुरू होता है. अपने भीतर उस परमात्मा की उपस्थिति को महसूस करते ही सारे अज्ञान और अविद्या से पर्दा हट जाता है. तब देह की उपयोगिता इस आत्मा को धारण करने हेतु ही नजर आती है, सुख पाने हेतु नहीं ! मन सात्विक भावों को प्रश्रय देने का स्थल बन जाता है, विकारों की आश्रय स्थली नहीं. तन के रोग हों या मन की पीड़ा सभी का अंत उसका आश्रय लेने पर हो जाता है. सद्गुरु के बिना यह ज्ञान नहीं मिलता, वे उनके सच्चे स्वरूप के दर्शन कराते हैं, उसके बाद तो वह सांवला सलोना स्वयं ही आकर हाथ थाम लेता है, उसको एक बार अपने मान लें तो फिर वह स्वयं से अलग होने नहीं देता !
बहुत बहुत आभार!
ReplyDeleteखुद को जानना ही जीवन जीने की कला है. हम स्वयं के कण-कण से परिचित हों, मन और तन में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों के प्रति सजग रहें.
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने आदरणीय मैम
प्रेरक सृजन
ReplyDeleteप्रेरणादायी एवं सार्थक सृजन!--ब्रजेंद्रनाथ
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित सृजन।
ReplyDeleteआप सभी सुधी जनों का स्वागत व आभार!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
ReplyDeleteFree me Download krein: Mahadev Photo | महादेव फोटो