२१ मई २०१८
संत कहते हैं, जीवन में शुभ और अशुभ दोनों हैं, रात और दिन की
तरह सुख और दुःख की तरह विपरीत सदा साथ-साथ चलते हैं. सच्चा साधक वही है जो दोनों
को देखता है, और दोनों से ही प्रभावित नहीं होता. उसे तो वहाँ पहुंचना है जहाँ दो
नहीं हैं, अद्वैत ही उसकी मंजिल है. पोखर में जल भी है और कीचड़ भी, कमल दोनों से
ऊपर है, अछूता ! यदि सुख की तृष्णा बनी रही तो दुःख की राह सामने ही खड़ी है. यदि
अच्छा ही अच्छा चाहा तो बुरा कोई न कोई रूप धरकर डराएगा ही. जीवन जैसा भी दिखाए
साक्षी भाव से देखने की कला ही अध्यात्म है. देह जब तक है जरा और मृत्यु का भय बना
ही है, प्राण जब तक हैं, भूख-प्यास लगते ही रहेंगे. मन जब तक है, शोक-मोह से
छुटकारा नहीं. स्वयं आत्मा में स्थित होकर इन तीनों को देखना है, जहाँ एकरस शांति
के अलावा कुछ भी नहीं. देह, प्राण, मन तभी तो हैं जब आत्मा स्वयं है, वही उनका
आधार है. जिसने इस रहस्य को समझ लिया वह सदा के लिए मुक्त है.
सच्चा संत वही है जो शून्य को प्राप्त है।
ReplyDeleteन कोई आगे
न कोई पीछे।
एक दम मस्त
स्वागत व आभार रोहितास जी !
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