११ मई २०१८
संत कहते हैं, मानव जन्म दुर्लभ है, हमें इसका भरोसा नहीं होता
और छोटी-छोटी बातों में स्वयं को डुबा कर हम इस बहुमूल्य जीवन को किसी न किसी तरह व्यतीत
करते रहते हैं. आधि, व्याधि और उपाधि के चक्र से कभी बाहर ही निकल पाते. एक समस्या
से दूसरी समस्या में जाने का नाम ही हमने जीवन समझ लिया है. सुख का स्वाद अभी मुख
से गया भी नहीं होता कि दुःख की रोटी थाली में पड़ी दिखाई देती है. हम रुककर यह भी
नहीं पूछते, कि आखिर इस दुःख का कारण क्या है ? मानव जीवन में ही हम इस सत्य से
परिचित हो सकते हैं. स्वयं के सच्चे स्वरूप का अज्ञान हमें मन और बुद्धि में ही
उलझाये रखता है. संस्कारों के कारण पूर्व के किये गये कृत्य पुनः-पुनः करके हम
बार-बार उसी दुविधा में पड़ते हैं. कितना अच्छा हो यदि हम संत वाणी पर पूर्ण
विश्वास करके अपने भीतर जायें और मानव जीवन की दिव्यता का स्वयं अनुभव करें.
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