१९ मई २०१८
जीव, जगत और ईश्वर, जब तक ये तीन दिखते हैं, समाधान नहीं
मिलता. मन में कोई न कोई भेद बना ही रहता है. जीव जब ईश्वर के तन्मयता का अनुभव कर
लेता है, जगत से भी कोई दूरी नहीं रह जाती. किसी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं रहती,
स्वयं को कुछ विशेष दिखाने की दौड़ समाप्त हो जाती है. अपने सुख के लिए किसी बाहरी साधन
पर ही निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं रहती. कर्त्तव्य कर्म करने के लिए ऊर्जा और
उत्साह सदा ही बना रहता है.
Gopal Sahu
ReplyDeleteअनुभव ही ज्ञान है। किताबों का ज्ञान मस्तिक का ज्ञान होता है और ध्यान हृदय का ज्ञान है। जब हृदय का ज्ञान नसों में नसों में दौड़ेगा। एक प्रेम प्रफुल्लित जीवन का आनंद मिलेगा