Wednesday, May 16, 2018

अंतर में जब बोध जगेगा


१७ मई २०१८ 
बुद्धिगत ज्ञान हमें कहीं पहुंचाता नहीं है, एक ही चक्र में उलझाये रखता है. आजकल प्रतिदिन सुबह व्हाट्सएप पर कितनी सुंदर ज्ञान की बातें पढ़ने को मिलती हैं. एक पल के लिए हृदय में कुछ शुभ अनुभूति होती है और जुगनू की चमक की तरह अगले ही पल खो जाती है. समाचारपत्र में या फेसबुक पर भी हम सुंदर संदेश पढ़ते हैं पर कुछ मिनटों में ही मन उसे भुला देता है. शास्त्र कहते हैं,  सुनना या पढ़ना अति आवश्यक है पर उससे भी अधिक आवश्यक है, पढ़े हुए पर चिंतन करना, और सबसे अधिक आवश्यक है उसे वास्तविक जीवन में उपयोग में लाने का प्रयत्न. उदाहरण के लिए आज सुबह ही एक संदेश मिला, जीवन आश्चर्य और विस्मय से भरा है, देखने की नजर चाहिए. पढ़कर अच्छा लगा, सोचा, संसार में इतने दुखों के बावजूद, इतनी जनसंख्या के बावजूद हर नया शिशु अपने भीतर वही उल्लास और प्रेम लिए जन्मता है, माँ-पिता के लिए वह किसी राजकुमार या राजकुमारी से कम नहीं होता. बाहर किसी बच्चे के रोने की आवाज आयी तो उसे जाकर चुप कराया और कुछ खाने को दिया. आँसुओं के मध्य उसकी मुस्कान किसी आश्चर्य से कम नहीं थी. बाहर फूलों पर तितलियाँ थीं और पेड़ों पर पंछी, जिन्हें किसी चुनाव के परिणाम और किसी तूफान का भय नहीं था. समझ में आया, जीवन हर पल अपनी पूरी भव्यता के साथ प्रकट हो ही रहा है, बस देखने की नजर चाहिए.

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