१६ मई २०१८
संत और शास्त्र हमें ‘स्वयं’ को जानने के लिए कहते हैं, जिसे ‘स्वयं’
के द्वारा ही जाना जा सकता है. जानने का साधन है बुद्धि, यदि बुद्धि स्थिर होगी,
शुद्ध होगी अर्थात राग-द्वेष से रंगी हुई नहीं होगी, तभी वह भीतर जाकर ‘स्वयं’ को
यानि आत्मा को दिखा सकती है. मन के द्वारा हम जगत का ज्ञान प्राप्त करते हैं. मन ही
इन्द्रियों से जुड़ा है, रंग, रूप, स्वाद, गंध और स्पर्श का ज्ञान हमें मन के
द्वारा होता है, बुद्धि इन्हें अच्छा या बुरा कहकर स्वीकारती या नकारती है और
बुद्धि के पीछे स्थित चेतन आत्मा इसे जानता है. मन व बुद्धि जड़ हैं, दोनों चेतन
आत्मा के लिए हैं. वह उनका स्वामी है और प्रेम, शांति व आनंद उसका स्वभाव है. मन,
बुद्धि प्रकृति से बने हैं और आत्मा परमात्मा का अंश है. मन व बुद्धि के साथ यदि
आत्मा का संबंध न हो तो वे कुछ नहीं जान पायेंगे. जैसे चन्द्रमा को यदि सूर्य का
प्रकाश न मिले तो वह जरा भी प्रकाश नहीं दे पायेगा. यदि हम स्वयं को आत्मा रूप में
अर्थात ज्ञाता, द्रष्टा रूप में मन, बुद्धि से पृथक जान लेते हैं तो सदा एकरस
शांति का अनुभव सहज ही कर सकते हैं.
बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बात ..
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