Sunday, April 29, 2018

बुद्धम शरणम गच्छामि !


३० अप्रिल २०१८ 
आज बुद्ध पूर्णिमा है. आज ही के दिन राजकुमार सिद्धार्थ, परिव्राजक से बुद्ध बने थे. बुद्ध की अपरिमित करुणा के बारे में बचपन से कितनी ही कहानियाँ हम सुनते आये हैं. उन जैसा करुणानिधि परमात्मा के अतिरिक्त दूजा कौन हो सकता है, इसीलिए उन्हें विष्णु का एक अवतार घोषित किया गया है. जीव मात्र के प्रति प्रेम सिखाने वाले बुद्ध पूर्ण चन्द्रमा के समान सृष्टि के पटल पर सुशोभित हैं. उन्होंने ध्यान की जिस विधि का प्रसार किया उसे ही विपश्यना कहते हैं. जिसमें शरीर को स्थिर रखकर श्वास को देखने मात्र से मन ठहर जाता है, बुद्धि प्रखर हो जाती है और कुसंस्कार मिटने लगते हैं. विपश्यना का नियमित अभ्यास करने से एक दिन मन अपनी गहराई में जाकर उस शांति का अनुभव करता है जो उस क्षण तक विचारों के बादलों से ढकी हुई थी. मन की गहराई में ही शांति, करुणा और प्रेम के मोती हैं, जिन्हें स्वयं में पाकर ही मानव जगत में लुटा सकता है.


2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन दादा साहब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. बहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !

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