११ अप्रैल २०१८
देह और मन को जोड़कर रखने वाली शक्ति ही प्राण है. प्राणायाम के द्वारा इस बन्धन को ढीला किया जाता है. देह रूपी धरती के इर्दगिर्द घूमता हुआ चन्द्रमा रूपी मन तब स्वयं का अनुभव करता है. उसे पहली बार आत्मा रूपी सूर्य का बोध होता है और यह ज्ञान होता है, उसका सारा प्रकाश तो सूर्य से ही आता है, वह स्वयं कुछ भी नहीं कर सकता. देह के प्रति आसक्ति को त्याग वह आत्मा की परिक्रमा करने लगता है. किन्तु मन का स्वभाव उसे बार-बार देह की तरफ ले जाता है, पूर्व के संस्कार इतनी जल्दी नहीं मिटते इसलिए प्रतिदिन का अभ्यास आवश्यक है. जगत के प्रति सारा आकर्षण देह से ही आरम्भ होता है, वैराग्य का अर्थ यही है कि मन स्वयं को आत्मा से जुड़ा हुआ माने, जिसे सुख के लिए किसी पर निर्भर होने की आवश्यकता नहीं है. मृत्यु के समय पहली बार देहातीत अवस्था का अनुभव होता है. राजा जनक को विदेह इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने देहभाव से मुक्ति का अनुभव जीतेजी कर लिया था.
सुंदर प्रस्तुति ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार महेंद्र जी !
ReplyDelete