१९ अप्रैल २०१८
जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश जब एक बिंदु पर केन्द्रित किया
जाता है अग्निपुंज बन जाता है, एकाग्र मन भी अति समर्थ होता है. मन जब अनेक दिशाओं
में बिखरा रहता है, अपनी शक्ति व्यर्थ ही खो देता है. मन की अशुद्धि उसका बिखराव
ही तो है. स्वयं के भीतर यदि हर क्षण सजगता बनी रहे, जो सोचना है उसे तय करके उस
विषय पर सोचा जाये, जो बोलना है उसे पहले मन में तोल कर मुख से बाहर निकाला जाये
और जो कर्म स्वयं तथा अन्यों के लिए हितकारी हों, उन्हें ही किया जाये तो जीवन एक
प्रसाद बन जाता है. हमें ऐसा प्रतीत होता है कि सोचना तो सभी को आता है, किन्तु यह
भी एक कला है और इसे भी सीखना पड़ता है. किसी एक विषय को मन में लाकर कुछ समय तक
केवल उसी के बारे में चिन्तन करना सीखने से हम मन की ऊर्जा को अनुकूल दिशा दे सकते
हैं.
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