२५ अप्रैल २०१८
जीवन में हमने कितने ही प्रसाद पाए हैं. न जाने कितनी बार हम
आनंद से भर कर उस परम के प्रति कृतज्ञता के भाव से भर गये हैं. अनगिनत बार प्रकृति
के सुंदर रूप देखकर मन आह्लादित हुआ है, स्वजनों के प्रेम में अभिभूत हुआ है. जीवन
उत्सव और उल्लास के छोटे-छोटे पलों से मिलकर बना है. परमात्मा आनंद स्वरूप है, और
वह हमें भी प्रसन्न देखना चाहता है. उषा का सुंदर वातावरण, उगता हुआ सूर्य, गाते
हुए पक्षी और अलमस्त खेलते हुए बच्चों को देखकर किसका मन उत्साहित नहीं हो जाता. दोपहरी
को दूर से आती कोकिल की आवाज और फूलों की गंध लिए खिड़की से आती बयार उर को एक नये
ही लोक में ले जाती है. जीवन का स्पर्श इतना कोमल है और इतना सम्पूर्ण कि इसके सान्निध्य
में होने पर हर चाह अर्थहीन ही है, किन्तु फिर भी हम इससे अपरिचित रह जाते हैं और
छोटे-छोटे परिचित सुखों के आकर्षण में ही बंधे रहते हैं.
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