सागर के भीतर अनेकों सुंदर जीव हैं, जिन्हें न वनस्पति कहा जा सकता है न ही जन्तु, जिन्हें देखकर लगता है इस सुंदर सृष्टि को बनाने के पीछे परमात्मा जैसे कोई क्रीड़ा कर रहा है. एक शक्ति है जो विभिन्न नाम-रूप धारण करके स्वयं को व्यक्त कर रही है . जीवजगत विचित्र है तो मानव जगत अद्भुत है. मानवीय बुद्धि की कोई सीमा नहीं, वही शक्ति मानव के मस्तिष्क द्वारा विचार की महानतम ऊँचाई पर पहुँच रही है. यदि कोई इस दृष्टिकोण से जगत में विचरता है तो उस शक्ति का तीसरा तत्व आनन्द सहज ही प्रकट होने लगता है. जैसे नींद में जाते ही जगत का लोप हो जाता है और मन सुख-दुःख के पार चला जाता है, वैसे ही जागृत अवस्था में भी प्रज्ञा के स्थित होने से अर्थात एक समाधान को पा लेने से साधक कृत-कृत्यता का अनुभव कर सकता है .
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