१८ अप्रैल २०१८
जीवन एक नदी की धारा की तरह बहता जाता है. जिसके दो किनारे हैं,
पहला है संसार और दूसरा है ईश्वर, अथवा पहला है शरीर और दूसरा है आत्मा. मन इन
दोनों किनारों को जोड़ने वाला पुल है. मन यदि सदा संसार में ही उलझा है तो अशांत
रहेगा. प्रकृति के विधान के द्वारा निद्रा में हम हर रात्रि दूसरे किनारे पर जाते
हैं और सुबह जब उठते हैं तो उस की याद मन में रहती है, तभी भोर में मन शांत रहता
है. संत का मन सदा ही दूसरे किनारे को स्पर्श करता रहता है सो मस्त रहता है. योग
की साधना के द्वारा हम भी ऐसा कर सकते हैं कि नित्य उस पार जाकर वहाँ की शीतल हवाओं
को भीतर समो लें और एक दिन ऐसा भी आये कि उन्हें जगत में बाँट भी दें.
जिसको मन को थामने की कला आ गई उसका जीवन सुधर जाता है। सुंदर प्रस्तूति।
ReplyDeleteसही कहा है आपने ज्योति जी, मन के हारे हार है, मन के जीते जीत..आभार !
DeleteSundar Vichaar ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार महेंद्र जी !
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